Menu
blogid : 3645 postid : 4

काश तिरंगा फहराने से रोकने की जगह इतनी सख्ती अलगाववादियों पर दिखा पाते उमर अब्दुला

hungama hi kyo barpa
hungama hi kyo barpa
  • 7 Posts
  • 4 Comments

काश तिरंगा फहराने से रोकने की जगह इतनी सख्ती अलगाववादियों पर दिखा पाते उमर अब्दुला
अब भी न जागी केन्द्र सरकार तो फिर हाबी हो जायेंगी कश्मीर में पाक परस्त ताकतें
भला हो भाजपा का कम से कम 20 साल उनकी तिरंगा यात्रा के चलते ही सही कश्मीर में भारत विरोध का झंडा बुलंद कर रहे नेताओं एवं उनकी सरपरस्त सरकार का चेहरा बेनकाब हो रहा है। आज कश्मीर सरकार इस बात पर तो आमादा है कि लालचैक पर किसी भी सूरत में तिरंगा न फहर पाये लेकिन उसे इस बात का कभी मलाल नहीं होता कि आये दिन भारत विरोधी बयानबाजी न सिर्फ खुलेआम कश्मीर में होती है, बल्कि तिरंगे को अपमानित कर शान से पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। मजे की बात यह कि आज तक अलगाववादी नेता या भारत विरोधी लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही उमर अब्दुला द्वारा की गयी। अब सबाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी को 20 साल बाद लाल चैक पर तिरंगा फहराने की याद क्यों आयी। इसके जिम्मेदार भी उतर अब्दुला ही है। भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी द्वारा 20 वर्ष पूर्व लाल चैक पर तिरंगा फहराये जाने के बाद प्रतिवर्ष सुरक्षाबलों द्वारा राष्ट्रीय पर्वाें पर तिरंगा फहराया जाता था। गत स्वाधीनता दिवस पर उमर सरकार द्वारा लालचैक पर तिरंगा फहराये जाने का कोई कार्यक्रम नहीं किया गया। कश्मीर की अलगाववादी जनता एवं सरकार को अमरनाथ मुद्दे पर जरूर जम्मू की एकजुट जनता ने छटी का दूध याद दिलाया था। मुंह की खाने के बाद उमर सरकार एवं अलगाववादी ताकतों ने अपनी पूरी ताकत लालचैक को तिरंगाविहीन बनाने में लगा दी है। नहीं तो क्या कारण है कि तिरंगा फहराये जाने से लालचैक या कश्मीर घाटी के सुलगने का खतरा है। कश्मीर की कथित आजादी के समर्थकों से यदि यह पूछा जाये कि कथित आजाद या गुलाम कश्मीर में कभी पाकिस्तान विरोधी नारा गूंजा है, या पाकिस्तानी झंडा जलाया गया है तो शायद उनका जबाव न में ही निकलेगा, जबकि यह कटु सच सामने आया है कि पाकिस्तान ने अधिकृत कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा सौगात के रूप में चीन को दे दिया है।
जम्मू कश्मीर राज्य का मतलब घाटी नहीं है। जम्मू कश्मीर में जम्मू, लद्दाख का भी अहम रोल है। अब यह सरकार को तय करना है कि कश्मीर की समस्या क्या है। आजादी के बाद भले ही कश्मीर अलगाव की आंच में झुलसा हो लेकिन उसका विलय भारत में हो गया था। सबसे अहम चीज 1971 में पाकिस्तान की करारी हार के बाद आये शिमला समझौते का मसौदा था। कश्मीर पर अगर कोई झगड़ा भारत का है तो उसका दूसरा पक्ष पाकिस्तान है। जिस क्षेत्रफल पर हमारी सेना काबिज है तथा किसी भी सूरत में भारत सरकार न तो इसे आजाद कर सकती है, एवं न ही कश्मीर को सौंप सकती है। ऐसे में यहां सख्ती के साथ भारतविद्रोही भावनाओं का दमन करना राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है। अब मैं बापस तिरंगा यात्रा पर आता हूं। कश्मीर हो या केरल हर स्थान पर तिरंगा फहराया जाना बेहद जरूरी है। यह कार्य भले ही सरकार पूरा करे अथवा कोई राजनीतिक दल। चूंकि भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा का ठेका ही अमूमन भाजपा के हिस्से आता है। नहीं तो क्या कारण है कि कांग्रेस एवं किसी राजनीतिक पार्टी के अन्य दिग्गजों ने लालचैक पर सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल द्वारा तिरंगा फहराये जाने की वकालत क्यों नहीं की। लालचैक कश्मीर घाटी का प्रतिकात्मक स्थान है। इसलिए भारतीय नागरिक होने के नाते कम से कम मैं इस बात की बकालत करता हूं कि यहां हर हालत में तिरंगा फहराया जाये। पाक परस्त नेताओं या बिद्रोही लोगों को एक बार तिहाड भेजना शुरू कर देना चाहिए। एक माह में कश्मीर अपने आप शांत हो जायेगा। शांतिप्रिय एवं भारत भक्तों के विकास पर हमारा सरकारी धन खूब खर्च हो। हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है।
कश्मीर की खूबसूरती इसे जन्नत बनाती है। इस जन्नत पर प्रत्येक आम भारतीय का अधिकार है। हमें इस बात को हमेशा याद रखना होगा। धारा 144 देशभक्तों की जगह गद्दारों पर लागू होनी चाहिए। तिरंगा लहराये जाने से घाटी के सुलगने की बात हो सकता है, सही हो लेकिन सरकार को इसे सीरियस लेना चाहिए। जिस तरह से देशभक्तों को रोकने के लिए सेना एवं सुरक्षाबलों का सहारा लिया जा रहा है। उसका चैथाई इंतजाम भी यदि अलगाववादियों को सबक सिखाने में किया जाता तो शायद कश्मीर को जन्नत बनते देर न लगे। कश्मीर कोई बहुत बड़ा राज्य नहीं है। सेना के साहस एवं शौर्य से सीमाओं की रक्षा होती है। ऐसे में यदि सरकार भी ऐसा शौर्य दिखाये तो वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर खुशहाल होगा। सब्सिडी का घी चखने वाले अलगाववादियों की नकेल को कसकर सरकार कश्मीर के युवाओं को रोजगार से जोड़े, भारत भक्ति वालों को सरकारी नौकरियां प्रदान की जायें। हर गरीब को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाये लेकिन यह जरूर सुनिश्चित हो कि अलगाव का एक भी बीज कश्मीर में न रहे। यह कार्य युवा उमर अब्दुला को करना था लेकिन वह कश्मीर की नब्ज को पकड़ने में नाकाम रहे। भाजपा की तिरंगा यात्रा उनके लिए चुनौति नहीं है, उनके लिए असली चुनौति अलगाववादी नेता एवं उनकी जहरीली विचारधारा है। सरकारी तंत्र के सामने भले ही भाजपाई तिरंगा न फहरा पायें लेकिन उमर अब्दुला या उनके पिता फारूख अब्दुला को खुद इस कमान को अपने हाथ में लेकर तिरंगा फहराने के बाद घाटी को शांत रखकर यासीन मलिक जैसे नेताओं को जबाव देना होगा। सेना का शौर्य यूं भी कश्मीर को आतंकी विहीन बना चुका है। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कोई भी ऐसा लालचैक न छोड़े जहां पर भाजपा या किसी अन्य दल को तिरंगा फहराने के लिए इतनी कशमकश से गुजरना पड़े।
मोहित कुमार शर्मा सम्पादक दैनिक न्यूज आॅफ जेनरेशन एक्स

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh