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अन्ना अनशन और सरकार

hungama hi kyo barpa
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अन्ना अनशन और सरकार
वही खेल आखिरकार सत्ता ने शुरू कर दिया जो सदा से होता आया है। मेरी शर्ट तेरी शर्ट से सफेद कैसे का खेल खेलने में महारथी कांग्रेसी दिग्गजों ने अन्ना को तुम कहकर आम जनता को बता दिया है कि उसकी धुलाई करना आसान नहीं है। अपना दामन बचाने के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक गिर सकती है। कांगे्रस के पुराने शेर शरद पवार से लम्बे समय से लोहा ले रहे अन्ना को अंदाजा था कि दिल्ली में कुछ ऐसा उनके साथ हो सकता है। वह इसके लिए तैयार भी थे। तभी उन्होंने ऐलान कर दिया कि कांग्रेस सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करे। इसे कहते हैं हिम्मत। कांग्रेस के दागदार दामन की धुलाई 16 अगस्त से होनी तय है। आजादी की दूसरी जंग का नाम भी इसे देना बिलकुल सही है। सरकार आज अन्ना से नहीं अन्ना की अनुनायी बन रही जनता से डर रही है। उसे डर है कि जिस तर्ज पर महात्मा गांधी ने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ों का ऐलान करने के बाद जनता ने महज पांच साल में ही जालिम हुकुमत का पुलिन्दा बांध दिया था, कहीं बैसे ही जनता ईमानदार बेईमानों की सरकार को सत्ता छोड़ने का फरमान न सुना दे। आज सोनिया से लेकर आडवाणी तक की रैली कराने के लिए नेताओं को किराये की पब्लिक जुटाने में पसीना छूट जाता है। वहीं अन्ना के पीछे लगभग पूरा देश एक साथ खड़ा नजर आ रहा है। सरकार की परेशानी यही है।
हो सकता है कि अन्ना या रामदेव का दामन भी दागदार हो लेकिन वह अपने लिए सत्ता नहीं मांग रहे हैं। योगगुरू रामदेव ने विदेशी बैंकों में जमा काला धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित किये जाने की मांग को लेकर सरकार से अपमान सहा, वही अन्ना भ्रष्टाचार के खात्मे को जनलोकपाल को संसद से पारित कराने में जुटे हैं। सरकार भयभीत है। इन्दिरा, राजीव, नरसिम्हाराव की सत्ता में कांग्रेस पर घोटालों एवं नियमों को मनमाफिक चलाने के कई आरोप लगे। मिस्टर क्लीन राजीव पर बोफोर्स के कमीशन का ऐसा गोला गिरा कि आज तक कांग्रेस सफाई देती ही ज्यादा दिखायी देती है, वहीं दूसरी ओर नरसिम्हाराव पर तो कई मुकदमे चले। कांग्रेस के कई सड़कछाप नेता अरबपति होकर सियासत पर कब्जा जमाये हैं। इनकी जांच के लिए कांग्रेस के पास समय नहीं है। वह चाहे तो भ्रष्टाचार के लिए अन्ना या किसी पर मुकदमा चलाये लेकिन ऐसा माहौल तो बनाये जिससे कि उसके नेताओं पर चलने वाले मुकदमों की मियाद भी कम हो सके।
महात्मा गांधी ने देश की जनता को भले ही गोरों से आजादी दिलाकर हर भारतीय के दिल में अपनी एक खास जगह बनायी लेकिन रामराज्य की स्थापना के लक्ष्य का अधूरा रह जाना आज हर किसी भारतीय को सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है। गांधी के रामराज्य की झलक आज सभी को अन्ना के अनशन के साथ मिलनी शुरू हो गयी है। आखिर अन्ना एवं महात्मा की सोच में तो कोई अन्तर नहीं था। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सब कुछ देश के लिए किया तो अन्ना भी आम आदमी के लिए ही बिगुल फूंक रहे हैं। सत्ता पहले भी परिवर्तन के समर्थकों को कुचलने के लिए शक्ति का प्रयोग करती थी, आज भी सत्ता कुछ बैसा ही करने में जुटी हुई है। अन्तर इतना है बस पहले गोरे अधिकारियों के साथ मिलकर भारतीय सिपाही बेंत और गोली से जनता को कुचलते थे तो अब यह काम हमारे अपने चुने हुए नुमाइन्दे करने में लगे हैं। भारत की आजादी का सफर बड़ा ही रोचक रहा है। 1857 में गोरों की हुकुमत को जड़ से उखाड़ने के लिए जो प्रयास हुआ, उसमें पूरे भारत के एक साथ न खड़े होने का खामियाजा देश ने भुगता। अंग्रेजी सत्ता का सूर्य तकरीबन 90 वर्ष तक भारत के आसमान पर जगमगाता रहा। इस जनक्रान्ति ने हालांकि अंग्रेजी सत्ता को समझा दिया कि यदि उन्होंने डंडे के दम पर जनता के गुस्से को दबाया तो फिर विस्फोट हो सकता है। इसलिए भारतीय जनता के गुस्से को निकालने के लिए एक अंग्रेज अफसर एओ हयूम ने प्रेशर कुकर के रूप में कांग्रेस को जन्म दिया। यही कांग्रेस जनता के विद्रोही चेहरे को लेकर जब हाजिर हुई तो अंग्रेजी सत्ता के होश उड़ गये। गरमपंथी नेताओं के नेतृत्व में कांग्रेस ने अंग्रेजी सत्ता की ईंट से ईंट बजा दी। लाल, बाल, पाल की तिकड़ी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाकर कांग्रेस की बागडौर नरमपंथी नेताओं को सौंपने के बाद अंग्रेजी सरकार ने 1941 तक चैन की सांस ली। हालांकि महात्मा गांधी के भारत आगमन के बाद अंग्रेजों को समय समय पर ऐसे आन्दोलनों का सामना करना पड़ा। जिनमें से किसी पर भी कांग्रेस अडिग रह जाती तो शायद देश पहले ही आजाद हो गया होता। सत्ता के गलियारों में नई व पुरानी कांग्रेस में कोई अन्तर नहीं था। दोनों में ही राजनीति के ऐसे दांव पेंच चलते थे कि कब किसको बर्फ पर लगाया जा रहा है, इसका आम जनता को भी अंदाजा नहीं हो पाता था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कांग्रेस में दुर्गति हो या प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार पटेल एवं जवाहर लाल नेहरू के बीच चयन, सब कुछ ऐसा हुआ कि चाहकर भी आजादी के बाद महात्मा गांधी देश के आमजन को रामराज्य नहीं दे पाये। आप सोच रहे होंगे, इसमें अन्ना हजारे कैसे लिंक हो रहे हैं। जी हां यहीं से अन्ना युग का सूत्रपात होता है। आजादी के बाद सिस्टम को इस हिसाब से सत्ताधारियों ने टाइट किया कि नेताओं के पास पैसे की कोई कमी न रहे। इसी का नतीजा रहा कि टैंडर का ऐसा खेल शुरू हुआ। जिसने नेताओं एवं अफसरों का ऐसा गठजोड़ तैयार किया। जिसने दोनों हाथों से सरकारी खजाने को लूटा। चीन युद्ध के समय कई घोटाले सरकार के सामने थे लेकिन किसी पर एक्शन नहीं हुआ। इन्दिरा युग से पहले तक नेता और अफसर कम बेईमान थे लेकिन आपातकाल के बाद तो हालात और भी बिगड़ गये। लाइसेसिंग से लेकर सरकार के छोटे से दफ्तर में फाइल चलाने की कीमत तय होने लगी। आम आदमी का पैसा नीचे से ऊपर की ओर चल पड़ा। राजनीतिक दल चंदा लेकर कारोबारियों के पक्ष में नीतियों का निर्माण कर आम जनता के मुंह से निबाला छीनने लगे तो दूसरी ओर लालफीताशाही में बिना हथेली गर्म किये काम को अटकाने का चलन शुरू हो गया। क्या उद्योगपति, क्या आम आदमी सभी को अपना काम कराने के लिए अफसरों से लेकर बाबुओं की हथेली गर्म करने का गुर सीखना पड़ा। शायद बापू के रामराज्य में ऐसा दृश्य न हो लेकिन आजादी के बाद अपनी चुनी हुई सरकार में अपना काम कराने के लिए आम आदमी धक्के खाने लगा। चुनाव जीतना आम आदमी का काम न रह जाये। इसका भी नेताओं ने पूरा ध्यान रखा। चुनाव को इतना महंगा बना दिया गया कि नोटों की ढेरी के बिना कोई चुनाव में हिस्सा लेने के विषय में सोच भी न सके। इस बात को नेता अच्छी तरह जानते हैं, तभी तो कपिल सिब्बल या शरद पवार सरीखे राजनेता अन्ना हजारे जैसे परिवर्तन के नायकों को सीधे चुनाव में आने की चुनौति देते हैं। पटवारी से लेकर बाबू तक के भ्रष्टाचार से जहां आमजन दुखी है, वहीं पीएम, सीएम की लूट से देश का सरकारी खजाना त्रस्त है। देश एवं जनता की चिंताओं के निदान हेतु परमपिता परमात्मा ने अन्ना युग के प्रारम्भ होने का शंखनाद कर दिया है। 2011 से पहले अन्ना अनशन के जरिये कमाल दिखा चुके हैं। यह उनके अनशन का कमाल रहा कि वह आरटीआई के रूप में आमजन को उसके हक की रक्षा के लिए ब्रह्मस्त्र देने में कामयाब रहे। इस आरटीआई ने कमाल भी दिखाया। आदर्श घोटाला, 2जी एवं कामनवेल्थ घोटाले, विभिन्न राज्यों के टैंडर घोटाले से लेकर गांव की सड़कों के गोलमाल तक आरटीआई जगजाहिर करने के काम में आई। एक पुरानी कहावत है कि अंधा बांटे रेबड़ी फिर फिर अपनों को दे। यह काम नेताओं एवं अफसरों के गठजोड़ ने किया। आज भले ही नेता खुद को ईमानदार करार दें लेकिन उनके कारनामे अब जनता जान चुकी है। कोई भी नेता किसी भी ऐसे कानून की वकालत करने को तैयार नहीं है, जिससे उसकी गर्दन पर फंदा कस जाये। यही कारण है कि रामदेव को सियासत का योग कराने के बाद केन्द्र सरकार अन्ना युग को भी बिदा करने की तैयारी कर रही है। अब सबाल यह उठता है कि आखिर को अन्ना को अनशन क्यों करना पड़ रहा है। उन्होंने जिस लोकपाल का सपना जनता को दिखाया था, उसके प्रावधानों को देखकर सरकार ही नहीं बल्कि पूरी नेताओं की जमात डर गयी है। सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लोकपाल के पास जादू की छड़ी न होने का दावा तो कर रही है लेकिन सीबीआई, एंटी करप्शन व्यूरों आदि की ताकत देना ही नहीं चाहती। अन्ना के कानून में सबसे खतरनाक चीज उसमें समयबद्धता का होना है। सरकार यदि ठान ले तो क्या नहीं हो सकता। पाकिस्तान को देख लीजिए, जून में हुए मामले में पाक रेंजर को फंासी का आदेश महज दो महीनों में देकर अदालत ने दिखाया है कि ट्रायल कितनी तेजी से हो सकता है। यहां तो अफजल गुरू, कसाब से लेकर दफा पच्चीस या गेम्बलिंग एक्ट के मुकदमे का ट्रायल भी कई साल में पूरा होता है। फिर नेताओं के भ्रष्टाचार के मुकदमों का तो हाल बुरा है। अन्ना के लोकपाल को अगर सरकार और मजबूत बनाती तो शायद उन्हें अनशन की जरूरत न पड़ती। अब सबाल यह रह जाता है कि आखिर सरकार ने पहले रामदेव को क्यों कुचला फिर अन्ना के खिलाफ सख्त रबैया क्यों अपनाया जा रहा है। इसके पीछे बड़ा कारण है नेताओं के दामन का दागदार होना। नेताओं ने दो तरह से देश को लूटा है। बोफोर्स कांड से लेकर आज तक देश में नेताओं ने सरकारी खरीद, निर्माण प्रक्रियायों में टेंडर के खेल के जरिये माल बनाया है। बड़ी रकम को देश में रखा नहीं जा सकता। इसलिए बेनामी खातों में वह पैसा विदेशी बैंकों में जमा हुआ। यदि अन्ना का रामराज्य आया तो सियासत के कई बड़े चेहरों पर से नकाब का हटना तय है। लाखों करोड़ की रकम को राष्ट्रीय सम्पत्ति बनाने के मुद्दे पर जब रामलीला मैदान में बाबा रामदेव ने जनता को सियासत के योग रहस्य बताने शुरू किये तो नेताओं की एक जमात ने उनका पुलिन्दा बांध दिया। अन्ना भी उसी राह पर हैं। हालांकि जनता अब परिवर्तन का मन बना चुकी है। अन्ना 16 अगस्त को अपना अनशन शुरू करेंगे। यदि जनता एकसुर से अन्नायुग की अनुयायी बनने को तैयार होकर सत्ता के विरूध आती है तो लोकपाल भी बनेगा और लालफीताशाही का खात्मा होने के साथ ही देश में रामराज्य भी आयेगा।
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